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नेहरू और पटेल को मत लड़ाइए जनाब

Dr. Yogesh mishr
Published on: 18 Feb 2020 1:52 PM IST (Updated on: 23 Jun 2021 12:58 PM IST)
कुछ हद तक औपचारिकताएं निभाना जरूरी होने से मैं आपको मंत्रिमंड़ल में सम्मिलित होने का निमंत्रण देने के लिए लिख रहा हूं। इस पत्र का कोई महत्व नहीं है। क्योंकि आप तो मंत्रिमंडल के सुदृढ़ स्तंभ हैं1 अगस्त,1947 जवाहर लाल नेहरू द्वारा सरदार पटेल को लिखे गए पत्र का अंश।

आपके 1 अगस्त के पत्र के लिए अनेक धन्यवाद। एक दूसरे के प्रति हमारा जो अनुराग और प्रेम रहा है तथा लगभग 30 वर्ष की हमारी जो अखंड़ मित्रता है उसे देखते हुए औपचारिकता के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता। आशा है मेरी सेवाएं बाकी जीवन के लिए आपके अधीन रहेंगी। आपको उस ध्येय की सिद्वी के लिए मेरी शुद्ध और संपूर्ण वफादारी और निष्ठा प्राप्त होगी। जिसके लिए आपके जैसा त्याग और बलिदान भारत के अन्य किसी पुरूष ने नहीं किया है़ । आपने अपने पत्र में जो भावनाएं व्यक्त की हैं, उसके लिए मैं आपका कृतज्ञ हूॅं 3 अगस्त- 1947 को सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा नेहरू को लिखे गए पत्र के अंश।

अगर इस खतो किताबत को विदेश मंत्री एस जयशंकर पढ़ लिए होते तो यह कहने की गलती नहीं करते कि सरदार पटेल को अपनी कैबिनेट में नहीं लेना चाहते थे नेहरू। इस तरह के तमाम पत्र व्यवहार अगर सार्वजनिक किए जाएं और लोग पढ़ पाएं तो नेहरू और पटेल को लेकर विवाद खड़ा करने का सिलसिला खत्म हो सकता है, विवाद खड़ा नहीं होगा तो रामचंद्र गुहा और शशि थरूर जैसे लोगों को कूदने का मौका नहीं मिलेगा। पटेल के सहायक रहे वरिष्ठ नौकरशाह वीपी मेनन का बहाना लेकर इतिहास से छेड़छाड़ नहीं की जा सकेगी। हमें अपने इतिहास पुरूषों और पूर्वजों को अब एक दूसरे के सामने हथियार और ढ़ाल की तरह खड़े करने का सिलसिला बंद करना चाहिए। हमारे पूर्वज और महापुरूष राजनीति चमकाने का जरिया नहीं होने चाहिए।

जवाहर लाल नेहरू ने अपने आत्मकथा में सरदार पटेल के व्यक्तित्व कई जगह बेहद सुंदर चित्रण किया है। वारडोली सत्याग्रह में पटेल की भूमिका के बारे में नेहरू लिखते हैं- वारडोली हिंदुस्तान के किसानों के लिए आशा, शक्ति और विजय का प्रतीक बन गई।भगत सिंह को फांसी दिए जाने के तत्काल बाद करांची में जो कांग्रेस की बैठक हुई उसकी सदारत पटेल कर रहे थे, नेहरू ने लिखा है- इस अधिवेशन के सभापति सरदार पटेल हिंदुस्तान के बहुत ही लोकप्रिय और जोरदार आदमी थे। उन्हें गुजरात के सफल नेतृत्व की सुकीर्ति प्राप्त थी। पटेल के निधन पर पंडित नेहरू ने कहा था, 'सरदार का जीवन एक महान गाथा है। जिससे हम सभी परिचित हैं। पूरा देश यह जानता है। इतिहास इसे कई पन्नों में दर्ज करेगा। उन्हें राष्ट्र-निर्माता कहेगा। इतिहास उन्हें नए भारत का एकीकरण करने वाला कहेगा। और भी बहुत कुछ उनके बारे में कहेगा। लेकिन हममें से कई लोगों के लिए वे आज़ादी की लड़ाई में हमारी सेना के एक महान सेनानायक के रूप में याद किए जाएंगे। एक ऐसे व्यक्ति जिन्होंने कठिन समय में और जीत के क्षणों में, दोनों ही मौकों पर हमें नेक सलाह दी। एक ऐसे दोस्त, सहकर्मी और कॉमरेड जिनके ऊपर हम हर हाल में भरोसा कर सकते थे। वे एक ऐसे मजबूत दुर्ग की तरह थे जिन्होंने संकट के समय में हम सबके कमजोर और ढुलमुल हृदय में वीरता की भावना भरी।

नेहरू, पटेल के रिश्तों को जानने के लिए नेहरू के 60वें जन्मदिन पर पटेल द्वारा भेजे गए शुभकामना संदेश को भी जरूर पढ़ना चाहिए, ''कई तरह के कार्यों में एक साथ संलग्न रहने और एक-दूसरे को इतने अंतरंग रूप से जानने की वजह से स्वाभाविक रूप से हमारे बीच का आपसी स्नेह साल-दर-साल बढ़ता गया है। लोगों के लिए यह कल्पना करना भी मुश्किल होगा कि जब हमें एक-दूसरे से दूर होना पड़ता है और समस्याओं को सुलझाने के लिए हम एक-दूसरे से सलाह-मशविरा नहीं कर पाने की स्थिति में होते हैं, तो हम दोनों को एक-दूसरे कमी कितनी खलती है। इस पारिवारिकता, नजदीकी, अंतरंगता और भ्रातृत्व स्नेह की वजह से उनकी उपलब्धियों का लेखा-जोखा करना और सार्वजनिक प्रशंसा करना मेरे लिए बहुत मुश्किल है। लेकिन फिर भी, राष्ट्र के प्यारे आदर्श, जनता के नेता, देश के प्रधानमंत्री और आमजनों के नायक के रूप में उनकी महान उपलब्धियां एक खुली किताब जैसी हैं।

पटेल ने आगे लिखा...जवाहरलाल उच्च स्तर के आदर्शों के धनी हैं। जीवन में सौंदर्य और कला के पुजारी हैं। उनमें दूसरों को मंत्रमुग्ध और प्रभावित करने की अपार क्षमता है। वे एक ऐसे व्यक्ति हैं जो दुनिया के अग्रणी लोगों के किसी भी समूह में अलग से पहचान लिए जाएंगे। ...उनकी सच्ची दृढ़प्रतिज्ञता, उनके दृष्टिकोण की व्यापकता, उनके विज़न की सुस्पष्टता और उनकी भावनाओं की शुद्धता ये सब कुछ ऐसी चीजें हैं जिसकी वजह से उन्हें देश और दुनिया के करोड़ों लोगों का सम्मान मिला है। ...इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि स्वतंत्रता की अल्लसुबह के धुंधलके उजास में वे हमारे प्रकाशमान नेतृत्व बनें। और जब भारत में एक के बाद एक संकट उत्पन्न हो रहा हो, तो हमारी आस्था को कायम रखनेवाले और हमारे सेनानायक के रूप में हमें नेतृत्व प्रदान करें। मुझसे बेहतर इस बात को कोई नहीं समझ सकता कि हमारे अस्तित्व के इन दो कठिन वर्षों में उन्होंने देश के लिए कितनी मेहनत की है। देश के प्रति अपनी व्यापक जिम्मेदारियों के निर्वहन और अपनी चिंताओं के चलते इन दो सालों में मैंने उन्हें तेजी से बूढ़ा होते हुए देखा है।

गांधीजी के आश्रम के हरिभाऊ उपाध्याय नेहरू और पटेल दोनों के करीबी रहे। अपने संस्मरण 'सरदार पटेल : इन कॉन्ट्रास्ट विद नेहरू' में लिखा है, पंडित नेहरू और पटेल का मिज़ाज अलग तरह था। दोनों के कार्य करने की शैली भी अलग थी। लेकिन अंतरिम सरकार में पटेल ने नेहरू को तत्काल अपना नेता मानना शुरू कर दिया। पंडितजी भी उन्हें अपने परिवार के बड़े भाई जैसा सम्मान देते थे। मतभेदों और अनबन की अफवाहों के बीच लोग दोनों के अलगाव की उम्मीद करके खुश तो होने लगे, लेकिन सरदार ने कभी ऐसी बातों को तूल नहीं दिया। यदि दोनों में से किसी की भी नीतियों की कोई तीसरा व्यक्ति आलोचना करता, तो ये दोनों ही एक-दूसरे के बचाव में उस आलोचक को आड़े हाथों लेते थे। दोनों ही एक-दूसरे के लिए ढाल का कार्य करते थे। मृत्यु-शैय्या पर अपने अंतिम क्षणों में सरदार ने अपने लोगों से कहा कि हम नेहरू की ठीक से देखभाल करें, क्योंकि सरदार के गुजर जाने पर नेहरू बहुत ही अधिक दुखी हो जाएंगे। ठीक इसी तरह एक बार नेहरू को किसी ने बताया कि सरदार ने उनपर कोई तल्ख टिप्पणी की है। वास्तव में सरदार अपनी व्यंग्योक्तियों के लिए मशहूर थे और एक बार नेहरू उसका शिकार हो गए. उस कटाक्ष की बात जब किसी ने नेहरू को सुनाई तो नेहरू ने अपने उस मित्र को लगभग डांटते हुए कहा, इसमें कौन सी बड़ी बात हो गई! आखिरकार वे हमारे बड़े भाई जैसे हैं, उन्हें हमपर व्यंग्य करने का पूरा अधिकार है। वे हमारे अभिभावक हैं।

नेहरू पटेल को बड़ा भाई और मार्गदर्शक मानते थे। उन्होंने संगठन चलाने का तरीका पटेल से सीखा था। दोनों की भूमिका दो हाथ, दो आंख, दो कान और दो पैरों जैसे थी। दोनों के बीच विवाद विचार का था, दृष्टिकोण का था। व्यक्तित्व का नहीं। दोनो पूरक थे, प्रतिस्पर्धी नहीं। दुर्गादास ने अपनी किताब 'इंडिया-फ्राम कर्जन टू नेहरू एंड ऑफटर' में दोनों नेताओं के बीच के रिश्तों की खटास के बारे में जिक्र किया है। हालांकि नारायणी वसु ने एक पूर्व नौकरशाह के जीवनी के आधार पर लिखी अपनी किताब में नेहरू और पटेल के बीच के रिश्ते खराब थे इसका खंडन किया है।

कहा जाता है कि नेहरू ने पटेल को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया। इसे भी सही अर्थों में समझने की जरूरत है। 1946 मे आजादी की उम्मीद बन गई थी। तय था कि जो कांग्रेस अध्यक्ष होगा, वही प्रधानमंत्री हो जाएगा। 6 साल से मौलाना अबुल कलाम आजाद चुनाव न होने की वजह से अध्यक्ष थे। वे खुद चुनाव लड़ना चाहते थे। 29 अप्रैल, 1946 नामांकन की अंतिम तिथि थी। 15 राज्यों में से 12 राज्यों ने अध्यक्ष के लिए पटेल का नाम प्रस्तावित किया था। 3 किसी के साथ नहीं थे। गांधी के समर्थन के बाद भी नेहरू का कोई नाम लेवा नही था। नेहरू के प्रति गांधी में पक्षपाती प्रेम था। कांग्रेस संगठन में यह बात सब जानते थे कि पटेल जो कह देंगे गांधी वहीं करेंगे। गांधी जो भी कह देंगे अपनी आपत्ति जताने के बाद भी पटेल मान जाएंगे। गांधी और पटेल के बीच के रिश्तों को यरवदा जेल में रहने के दौरान गांधी की इस टिप्पणी से समझा जा सकता है- जेल में पटेल ने बीमार पड़ने पर मेरी ऐसी देखभाल की जैसी एक मां अपने बच्चे का करती है।

गांधी मार्डन विचार देश के लिए आजादी के बाद जरूरी मानते थे। नरम नीति फायदेमंद होगी यह उनकी धारणा थी। नतीजतन, उन्हें प्रधानमंत्री के लिए नेहरू उपयुक्त लग रहे थे। लिहाजा उन्होंने जेबी कृपलानी से कहा कि कार्यसमिति के कुछ सदस्यों को नेहरू के समर्थन के लिए तैयार करें। यही नहीं, गांधी ने पटेल से मुलाकात की। पटेल को नेहरू के समर्थन में हट जाने को कहा। 26 अप्रैल, 1946 को पटेल ने बयान जारी कर कहा नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना जाए।'' अगर दोनों में व्यक्तित्व का संघर्ष होता तो पटेल 12 राज्यों के कांग्रेस के समर्थन के बाद हटते ही क्यों?
यह भी कम लोग जानते होंगे कि नेहरू सी राजगोपालाचारी को भारत का पहला राष्ट्रपति बनाना चाहते थे, पर पटेल ने उन्हें राष्ट्रपति नहीं बनने दिया। इतना ही नहीं, सरदार पटेल ने राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति बनवा दिया। महज इसी वजह से सी राजगोपालाचारी पटेल से नाराज रहते थे। ऐसे ही तमाम लोगों का नेहरू और पटेल से अपनी अपनी हित अहित के लिए प्रेम है।


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Dr. Yogesh mishr

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